पवित्र अक्षर ‘ॐ’: इसके गहरे अर्थ और ब्रह्मांडीय स्पंदन की खोज
कुछ ध्वनियाँ होती हैं, और फिर एक आदि-ध्वनि होती है। वह ध्वनि जो किसी के द्वारा उत्पन्न नहीं की गई, जो सदा से है, और जिसमें से अन्य सभी ध्वनियाँ उत्पन्न हुई हैं। सनातन दर्शन में, वही आदि-ध्वनि, वही ब्रह्मांडीय गूंज ‘ॐ’ (Om / AUM) है।
यह केवल एक अक्षर या एक शब्द नहीं है। यह कोई मंत्र नहीं है जिसे केवल जपा जाता है; यह वह अनुभव है जिसमें उतरकर स्वयं को पाया जाता है। यह मंदिरों की घंटियों में है, बहती नदी के प्रवाह में है, और गहरे ध्यान की शांति में है।
परन्तु ॐ का वास्तविक अर्थ क्या है? इसके कंपन में ऐसा क्या रहस्य छिपा है कि ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक विज्ञान तक, सभी इसके प्रभाव से चकित हैं? आज, शब्द-संकलन पर, हम इस पवित्र अक्षर की परतों को खोलेंगे और इसके गहरे अर्थ और ब्रह्मांडीय स्पंदन की यात्रा पर चलेंगे।
ॐ, आमीन और एक सार्वभौमिक गूंज
यह एक आकर्षक विचार है कि ‘ॐ’ और सेमेटिक परंपराओं में इस्तेमाल होने वाले शब्द ‘आमीन’ या ‘अमीन’ की ध्वनियों में एक अद्भुत समानता है। अमेरिका के प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. डेविड फ्रॉली (वामदेव शास्त्री) जैसे चिंतक इस पर एक गहरा दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।
उनके अनुसार, यह एक सीधे भाषाई संबंध से अधिक एक गहरा आध्यात्मिक संबंध हो सकता है। “मंत्रों के विज्ञान” की दृष्टि से, यह संभव है कि विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी आध्यात्मिक खोज में ब्रह्मांड के उन्हीं मौलिक, स्वीकारात्मक कंपनों (fundamental, affirmative vibrations) की खोज की हो। इसलिए, भले ही भाषा विज्ञान की दृष्टि से इनकी जड़ें अलग हों, इनका आध्यात्मिक कार्य और ध्वनि-अनुनाद (phonetic resonance) उल्लेखनीय रूप से समान है।
ॐ का स्वरूप: तीन ध्वनियाँ और एक मौन
ॐ: ब्रह्मांड की आदि-ध्वनि
यह पवित्र अक्षर तीन ध्वनियों का संगम है, जो चेतना की तीन अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
जाग्रत अवस्था
सृष्टि का आरम्भ। बाहरी दुनिया का अनुभव, जहाँ हमारी इंद्रियाँ सक्रिय होती हैं।
स्वप्न अवस्था
सृष्टि का संरक्षण। आंतरिक मन का संसार, जहाँ स्वप्न और स्मृतियाँ आकार लेती हैं।
सुषुप्ति
सृष्टि का विलय। गहन निद्रा की शांति, जहाँ कोई इच्छा या स्वप्न नहीं होता।
तुरीय: चौथा आयाम
‘म’ की गूंज के बाद की निस्तब्ध शांति, जो इन तीनों से परे है। यही शुद्ध चेतना और आत्मा का वास्तविक स्वरूप है। यही ॐ का अंतिम लक्ष्य है – मौन में विलय।
ॐ का उच्चारण तीन मूल ध्वनियों से मिलकर बना है: अ, उ, और म, जो क्रमशः सृष्टि की शुरुआत (जाग्रत अवस्था), संरक्षण (स्वप्न अवस्था), और विलय (सुषुप्ति) के प्रतीक हैं। परन्तु इन तीन ध्वनियों से भी महत्वपूर्ण वह है जो इनके बाद आता है – अमात्र (Amatra), यानी मौन। ‘म’ की गूंज के शांत होने के बाद जो निस्तब्ध शांति छा जाती है, वही ॐ का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण आयाम है।
मांडूक्य उपनिषद् का रहस्य: चेतना की चार अवस्थाएँ
मांडूक्य उपनिषद् ॐ की व्याख्या चेतना की चार अवस्थाओं के रूप में करता है: जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, और इन तीनों से परे चौथी अवस्था तुरीय। ॐ का जाप इन तीनों अवस्थाओं से गुजरते हुए उस चौथी, तुरीय अवस्था में प्रवेश करने की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो ‘म’ के बाद आने वाले मौन में अनुभव होती है।
एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: सार्वभौमिक प्रतीक
दिलचस्प बात यह है कि प्रसिद्ध पश्चिमी मनोवैज्ञानिक कार्ल युंग (Carl Jung) का काम भी ॐ के दर्शन से मेल खाता है। युंग ने ‘सामूहिक अचेतन’ (collective unconscious) और ‘आद्यरूप’ (archetypes) की अवधारणा दी। उनके अनुसार, ॐ जैसे प्रतीक सार्वभौमिक आद्यरूप हैं जो मानव मानस की समग्रता, यानी ‘स्व’ (the Self) का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह पूर्वी आध्यात्मिकता और पश्चिमी मनोविज्ञान के बीच एक गहरा सेतु है।
स्पंदन का विज्ञान और आधुनिक शोध
सनातन दर्शन कहता है कि पूरा ब्रह्मांड स्पंदन (vibration) से बना है, और वह मूल स्पंदन ॐ है। साइमैटिक्स (Cymatics) के प्रयोगों में जब ॐ की ध्वनि को किसी माध्यम से गुजारा जाता है, तो यह ‘श्री यंत्र’ जैसे पवित्र और जटिल पैटर्न बनाता है।
वैज्ञानिक शोध और ॐ का प्रभाव
पिछले कुछ दशकों में, ॐ के जाप के प्रभावों पर सैकड़ों वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं। इन अध्ययनों में पाया गया है कि:
- मानसिक शांति: ॐ का जाप मस्तिष्क के लिम्बिक सिस्टम (भावनाओं को नियंत्रित करने वाले हिस्से) की गतिविधि को कम करता है, जिससे तनाव और चिंता में तत्काल कमी आती है।
- तंत्रिका तंत्र का संतुलन: ॐ के कंपन वेगस नर्व (Vagus Nerve) को उत्तेजित करते हैं, जिससे हृदय गति और रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
- बेहतर एकाग्रता: नियमित जाप से मस्तिष्क के उन हिस्सों में सक्रियता बढ़ती है जो ध्यान और एकाग्रता के लिए जिम्मेदार हैं।
ॐ के जाप की विधि: एक सरल मार्गदर्शिका
ॐ के चामत्कारिक लाभों का अनुभव करने के लिए, आप इस सरल विधि का पालन कर सकते हैं:
- शांत स्थान चुनें: एक ऐसी जगह बैठें जहाँ आपको कुछ मिनटों के लिए कोई परेशान न करे।
- आराम से बैठें: अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए, आराम से पालथी मारकर बैठें। अपनी हथेलियों को घुटनों पर रख सकते हैं।
- गहरी श्वास लें: आँखें बंद करें और एक गहरी, लंबी श्वास अंदर लें।
- जाप आरम्भ करें: श्वास छोड़ते हुए, ॐ का उच्चारण शुरू करें।
- ‘अ’ की ध्वनि को नाभि के पास से उठते हुए महसूस करें।
- ध्वनि को धीरे-धीरे ‘उ’ में बदलने दें, इसके कंपन को अपनी छाती और गले में महसूस करें।
- अंत में ‘म’ की ध्वनि के लिए अपने होठों को धीरे से बंद करें, और इसके कंपन को अपने मस्तिष्क और सिर के ऊपरी भाग में महसूस करें।
- मौन में उतरें: ‘म’ की ध्वनि समाप्त होने के बाद उत्पन्न हुई शांति और मौन में कुछ क्षणों के लिए डूब जाएँ। यही सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- पुनः दोहराएँ: इस प्रक्रिया को अपनी सुविधानुसार 5, 11, या अधिक बार दोहराएँ।
निष्कर्ष: शब्द नहीं, अनुभव
ॐ को पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता; इसे केवल अनुभव किया जा सकता है। यह ब्रह्मांड का संगीत है जिसमें हम सभी एक सुर हैं। यह वह नाव है जो हमें चेतना के सागर में जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति के द्वीपों से पार कराकर तुरीय के अनंत आकाश तक ले जाती है।
यह केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि स्वयं सत्य का ध्वनि-रूप है। अगली बार जब आप इस पवित्र अक्षर को सुनें या इसका उच्चारण करें, तो इसे केवल एक शब्द के रूप में न देखें। इसकी तीन ध्वनियों में डूबें, और फिर उसके बाद की शांति में खो जाएँ। शायद उसी गहरे मौन में आपको ब्रह्मांड की वह आदि-गूंज सुनाई दे, जो आप स्वयं हैं।