गुलज़ार की शायरी एक विंटेज डायरी में - best hindi quotes by gulzar

Gulzar Quotes Hindi | गुलज़ार के 15+ विचार जो आपके मन में उतर जाएँगे

गुलज़ार साहब केवल एक नाम नहीं, एक अहसास हैं। वे शब्दों के जादूगर हैं जो साधारण से लम्हों में छिपी असाधारण भावनाओं (emotions) को कागज़ पर उतार देते हैं – ठीक वैसे ही जैसे बारिश की बूँदें खिड़की के शीशे पर कोई अनकही कहानी लिख जाती हैं, या जैसे हवा का झोंका कानों में कोई पुराना गीत गुनगुना जाता है।

२०२५ की इस भागदौड़ भरी दुनिया में, जहाँ हर कोई गति और सफलता के पीछे भाग रहा है, गुलज़ार के **जीवन पर लिखे हिन्दी विचार (hindi quotes by gulzar on life)** हमें रुककर साँस लेने, स्वयं को सुनने और जीवन की छोटी-छोटी बारीकियों को महसूस करने का अवसर देते हैं। उनकी शायरी मरहम भी है और आईना भी, जो हमें हमारे ही अंतर्मन (introspection) के उन कोनों से मिलाती है जहाँ हम अक्सर जाने से डरते हैं।

आइए, गुलज़ार की इस काव्यात्मक दुनिया में उतरें और ज़िंदगी के उन रंगों को महसूस करें जो अक्सर हमारी नज़रों से ओझल हो जाते हैं।

ज़िंदगी की हक़ीक़त

मिलता तो बहुत कुछ है इस ज़िंदगी में, बस हम गिनती उसी की करते हैं, जो हासिल न हो सका।
“Milta toh bahut kuch hai iss zindagi mein, bas hum ginti usi ki karte hain, jo haasil na ho saka.”

कल्पना कीजिए कि आपके हाथ फलों से भरी एक टोकरी है, पर आपकी आँखें उस एक फल पर टिकी हैं जो डाल पर सबसे ऊँचा लगा है। गुलज़ार साहब इन सरल शब्दों में जीवन के सबसे बड़े विरोधाभास को दर्शाते हैं। हम अक्सर उन अनगिनत ईश्वर की देन को भूल जाते हैं जो हमारे पास हैं, और उस एक अधूरी ख्वाहिश के शोक में डूबे रहते हैं। यह विचार हमें कृतज्ञता का पाठ पढ़ाता है।

स्रोत: यह गुलज़ार साहब की प्रसिद्ध नज़्मों में से एक है, जो अक्सर उनके काव्य पाठों में सुनी जाती है।
आईना देख कर तसल्ली हुई, हमको इस घर में जानता है कोई।
“Aayina dekh kar tasalli hui, humko iss ghar mein jaanta hai koi.”

जीवन की भीड़ में, जहाँ हम रोज़ाना अनगिनत भूमिकाएँ निभाते हैं, हमारा अपना अस्तित्व कहीं खो जाता है। यह शेर उस अकेलेपन के अहसास को पकड़ता है जहाँ व्यक्ति स्वयं से ही अजनबी हो जाता है। आईने में अपना प्रतिबिंब देखना केवल एक भौतिक क्रिया नहीं, बल्कि स्वयं से पुनः जुड़ने का एक क्षण है – यह अहसास कि इस शरीर रूपी घर में कोई है जो आपको वास्तव में जानता है।

स्रोत: यह शेर उनकी प्रसिद्ध ग़ज़लों में से एक है, जो आत्म-पहचान (self-identity) और अकेलेपन की भावना को दर्शाता है।
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर, आदत इस की भी आदमी सी है।
“Waqt rehta nahi kahin tik kar, aadat iski bhi aadmi si hai.”

समय और मनुष्य के चंचल स्वभाव में कितनी समानता है! गुलज़ार यहाँ समय के निरंतर बहते रहने की प्रकृति को मानवीय आदत से जोड़कर एक गहरा दर्शन प्रस्तुत करते हैं। जैसे मनुष्य एक स्थान पर टिक नहीं पाता, वैसे ही समय भी कभी किसी के लिए नहीं रुकता। यह हमें हर पल का मूल्य समझने के लिए प्रेरित करता है।

स्रोत: यह गुलज़ार की अनूठी काव्य-विधा **”त्रिवेणी”** से है, जो तीन पंक्तियों में एक संपूर्ण विचार प्रस्तुत करती है।
कौन कहता है हम झूठ नहीं बोलते? एक बार खैरियत तो पूछ के देखो।
“Kaun kehta hai hum jhoot nahi bolte? Ek baar khairiyat toh pooch ke dekho.”

यह एक अत्यंत मार्मिक और सत्य कथन है जो हमारे सामाजिक व्यवहार पर गहरा कटाक्ष करता है। अक्सर जब कोई पूछता है “आप कैसे हैं?”, तो हम अपनी वास्तविक पीड़ा या चिंता को छिपाकर स्वतः ही “मैं ठीक हूँ” कह देते हैं। गुलज़ार साहब इस छोटे से झूठ में छिपे उस विशाल दर्द को उजागर करते हैं जिसे हम दुनिया से छिपाते हैं।

स्रोत: यह गुलज़ार की आधुनिक शायरी का एक प्रसिद्ध उदाहरण है, जो उनके तीखे और यथार्थवादी अवलोकन को दर्शाता है।

भावनाएँ और अंतर्मन

बहुत अंदर तक जला देती हैं, वो शिकायतें जो बयां नहीं होतीं।
“Bahut andar tak jala deti hai, woh shikayatein jo bayaan nahi hoti.”

अनकहे शब्द और दबी हुई भावनाएँ (emotions) राख के नीचे सुलगते अंगारों की तरह होती हैं। बाहर से सब शांत दिखता है, पर भीतर ही भीतर वे हमें जलाकर खोखला कर देती हैं। गुलज़ार यहाँ उस आंतरिक पीड़ा को आवाज़ दे रहे हैं जो मौन के बोझ तले दब जाती है। यह हमें सिखाता है कि भावनाओं को व्यक्त करना आत्म-चिकित्सा के लिए कितना आवश्यक है।

स्रोत: यह पंक्ति उनकी नज़्मों में अक्सर पाई जाती है और यह अनकही पीड़ा के विषय को दर्शाती है, जो उनके लेखन का एक मुख्य तत्व है।
शाम से आँख में नमी सी है, आज फिर आप की कमी सी है।
“Sham se aankh mein nami si hai, aaj phir aap ki kami si hai.”

यादें और अभाव अक्सर दिन ढलने के साथ और गहरे हो जाते हैं। गुलज़ार यहाँ उस सूक्ष्म उदासी को पकड़ते हैं जो किसी प्रियजन की अनुपस्थिति में हृदय को घेर लेती है। यह केवल दो पंक्तियाँ नहीं, बल्कि अकेलेपन और स्मृति का एक संपूर्ण चित्र है, जिसे हर उस व्यक्ति ने महसूस किया है जिसने किसी को खोया है।

स्रोत: यह उनकी ग़ज़ल **”शाम से आँख में नमी सी है”** की प्रसिद्ध पंक्ति है, जो उनकी भावनात्मक गहराई का प्रतीक है।
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता हूँ, मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती हैं।
“Main har raat saari khwahishon ko khud se pehle sula deta hun, magar roz subah yeh mujhse pehle jaag jaati hain.”

यह शेर जीवन की अथक आकांक्षाओं और सपनों का एक सजीव चित्रण है। हम दिन भर की थकान के बाद अपनी इच्छाओं को शांत करने की कोशिश करते हैं, परन्तु वे इतनी प्रबल होती हैं कि हर नई सुबह वे एक नई ऊर्जा के साथ हमारे सामने खड़ी हो जाती हैं। यह जीवन के उस निरंतर चलने वाले चक्र को दर्शाता है जहाँ सपने कभी मरते नहीं।

स्रोत: यह उनकी आधुनिक शायरी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो दैनिक जीवन के संघर्ष और मानवीय इच्छाओं के बीच के द्वंद्व को दर्शाता है।
आँखों को वीज़ा नहीं लगता, सपनों की सरहद नहीं होती।
“Aankhon ko visa nahi lagta, sapno ki sarhad nahi hoti.”

यह विचार हमारी कल्पना और सपनों की असीम स्वतंत्रता का जश्न मनाता है। भौतिक दुनिया भले ही सीमाओं, पासपोर्ट और वीज़ा के नियमों में बंधी हो, परन्तु हमारी आँखें और हमारे सपने किसी भी बंधन से मुक्त हैं। वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, जिससे चाहें मिल सकते हैं। यह मानव मन की अदम्य शक्ति का एक सुंदर प्रतीक है।

स्रोत: यह गुलज़ार के दर्शन का सार है, जो वे अक्सर अपनी नज़्मों और साक्षात्कारों में व्यक्त करते हैं।

ज्ञान और व्यक्तित्व

कुछ अलग करना है तो भीड़ से हट के चलिए, भीड़ साहस तो देती है पर पहचान छीन लेती है।
“Kuch alag karna hai to bheed se hat ke chaliye, bheed saahas to deti hai magar pehchan chhin leti hai.”

यह विचार व्यक्ति और समाज के बीच के द्वंद्व को खूबसूरती से प्रस्तुत करता है। भीड़ में चलना सुरक्षित महसूस करा सकता है, परन्तु यह आपकी विशिष्टता को समाप्त कर देता है। गुलज़ार हमें यह स्मरण कराते हैं कि असाधारण उपलब्धियों के लिए अकेले चलने का साहस आवश्यक है। पहचान बनाने के लिए, भीड़ का हिस्सा बनने के स्थान पर अपना मार्ग स्वयं बनाना पड़ता है।

स्रोत: यह गुलज़ार के उन विचारों में से है जो वे अक्सर युवाओं को संबोधित करते हुए कहते हैं, जो व्यक्तिवाद और मौलिकता को प्रोत्साहित करता है।
तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी, हैरान हूँ मैं।
“Tujhse naaraz nahi zindagi, hairaan hoon main.”

जीवन अक्सर हमारे सामने ऐसी परिस्थितियाँ लाता है जो हमारी समझ से परे होती हैं। इन क्षणों में क्रोधित या निराश होने के स्थान पर, गुलज़ार हमें आश्चर्यचकित होने का दृष्टिकोण देते हैं। यह एक गहरी स्वीकृति का भाव है, जहाँ हम जीवन के अप्रत्याशित मोड़ों पर शिकायत करने के बजाय, एक बच्चे की भाँति आश्चर्य से उन्हें देखते हैं।

स्रोत: यह उनके द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध गीत **”तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी”** (फिल्म: मासूम, १९८३) की पंक्ति है, जो जीवन के प्रति एक गहरे दार्शनिक चिंतन (reflection) को दर्शाती है।
अच्छी किताबें और अच्छे लोग तुरंत समझ में नहीं आते, उन्हें पढ़ना पड़ता है।
“Achchi kitabe aur achche log turant samajh mein nahi aate, unhe padhna padta hai.”

गहराई और मूल्य अक्सर सतह पर दिखाई नहीं देते। जिस प्रकार एक अच्छी पुस्तक को समझने के लिए समय और ध्यान की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार एक अच्छे व्यक्ति के चरित्र की परतों को समझने के लिए धैर्य और निकटता की आवश्यकता होती है। यह कथन हमें जल्दबाज़ी में निर्णय लेने से रोकता है और गहरी समझ को प्रोत्साहित करता है।

स्रोत: यह गुलज़ार की डायरी और लेखों में अक्सर पाया जाने वाला एक विचार है, जो उनके जीवन के अनुभवों का सार है।

प्रेम, पीड़ा और रिश्ते

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते।
“Haath chhutien bhi toh rishtey nahi chhora karte, waqt ki shaakh se lamhe nahi toda karte.”

गुलज़ार यहाँ रिश्तों और यादों की स्थायी प्रकृति को दर्शाते हैं। शारीरिक दूरियाँ भले ही आ जाएँ, परन्तु जो गहरे संबंध बन जाते हैं, वे समय के साथ समाप्त नहीं होते। साझा किए गए पल “वक़्त की शाख” पर हमेशा के लिए अंकित हो जाते हैं और उन्हें तोड़ा नहीं जा सकता। यह बिछोह में भी जुड़ाव का एक सुंदर अहसास है।

स्रोत: यह उनकी प्रसिद्ध ग़ज़लों में से एक है, जो रिश्तों की गहराई और समय की निरंतरता पर प्रकाश डालती है।
दिल है तो फिर दर्द होगा, दर्द है तो दिल भी होगा, मौसम गुज़रते रहते हैं।
“Dil hai toh phir dard hoga, dard hai toh dil bhi hoga, mausam guzarte rehte hain.”

यह जीवन के सुख-दुःख के चक्र का एक गहरा दार्शनिक सारांश है। जहाँ भावनाएँ हैं, वहाँ पीड़ा भी होगी, और पीड़ा का अहसास ही इस बात का प्रमाण है कि हम जीवित हैं और महसूस करने में सक्षम हैं। “मौसम गुज़रते रहते हैं” पंक्ति हमें यह आश्वासन देती है कि दुःख स्थायी नहीं है, समय के साथ सब कुछ बदल जाता है।

स्रोत: यह विचार उनकी कई कविताओं और गीतों में प्रतिध्वनित होता है, विशेषकर फिल्म **”मौसम”** (१९७५) के गीतों में, जिसका निर्देशन भी उन्होंने किया था।
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं… रात भी आई थी और चाँद भी था, हाँ मगर… नींद नहीं।
“Tere jaane se toh kuch badla nahi… raat bhi aayi thi aur chand bhi tha, haan magar… neend nahi.”

यह किसी के चले जाने के बाद जीवन में आए सूक्ष्म परन्तु गहरे शून्य को दर्शाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। bề ngoài (बाह्य रूप से) सब कुछ वैसा ही है – रात, चाँद, सब अपनी जगह पर हैं, परन्तु आंतरिक शांति और सुकून (नींद) गायब है। यह दिखाता है कि हानि का प्रभाव बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि हमारी आंतरिक दुनिया में होता है।

स्रोत: यह शेर उनकी नज़्मों और गीतों में अक्सर पाया जाता है, जो बिछोह के दर्द को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करता है।
थोड़ा सा रफू करके देखिये ना… फिर से नयी सी लगेगी, ज़िन्दगी ही तो है।
“Thoda sa rafoo karke dekhiye na… phir se nayi si lagegi, zindagi hi toh hai.”

यह विचार जीवन की कठिनाइयों और भावनात्मक चोटों के प्रति एक अत्यंत कोमल और आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। “रफू करना” (कपड़े की मरम्मत करना) का यह अनूठा रूपक हमें सिखाता है कि जीवन में आई दरारों को ठीक किया जा सकता है और थोड़ी सी देखभाल से जीवन फिर से सुंदर और नया महसूस हो सकता है। यह निराशा के क्षणों में एक मधुर आश्वासन है।

स्रोत: यह उनकी प्रसिद्ध नज़्म **”ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा”** का एक अंश है, जिसे जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ दी है।

गुलज़ार साहब के शब्द केवल स्याही नहीं, बल्कि अहसास हैं जो सीधे आत्मा पर उतरते हैं। उनके **जीवन पर लिखे यह हिन्दी विचार** हमें यह स्मरण कराते हैं कि सबसे गहरी भावनाएँ अक्सर सबसे सरल शब्दों में छिपी होती हैं। वे हमें जीवन को उसकी संपूर्णता में स्वीकार करने के लिए प्रेरित करते हैं – उसकी खुशियों, उसके गमों, और उसके अनकहे रहस्यों के साथ।

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